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श्री. वैराग्य शतक आ बाजु राजा तणातो तणातो एक लाकडानी सहायथी कांठे आव्यो ने एक झाडनी नीचे सूई गयो. नजीकना नगरनो राजा अपुत्रयो मरी गयो ने तेथी मंत्रीओए पंचदिव्य प्रगटाव्या, आ राजा पर हाथिणीए अभीषेक कर्यो ने तेने राज्य मळ्यु. बनवा जोगे पेली राणी पण पांगळा साथे त्यां आवी चढी. गाममां स्त्रीना सतीपणानी अने पांगळाना कंठनी प्रशंसा थवा लागी. राजाए पण बनेने बोलाव्या ने ओळखी लीधां. पछी पूछ्यु, हे बाई ? आने उपाडीने तुं केम फरे छे ! पेलीए कह्यु – 'पिताए जेवो पति आप्यो होय तेने सतीओए इंद्र जेवो मानवो.' ए सांभळी राजा बोल्यो, हे पतिव्रते ! तने धन्य छे - घणीना बाहुन लोही पीधुं - साथळy मांस खाधुं ने छेवटे तेने नदीमां पधरावी दीधो. तारा सतीपणानी वात. थाय. छेवटे स्त्रीने अवध्य जाणी न्यायी राजाए तेने पोतानी हद बहार करी अने स्त्री चरित्र प्रत्यक्ष अनुभवी सर्व स्त्रीनो त्याग को-अपूर्व ब्रह्मचारी बन्यो. हे चेतन ! आवी स्त्रीओमां मोह करीने दुःखमां शा माटे पडे छे. तेनो त्याग करी ब्रह्मचर्यनो अजोड आनंद मेळव के जेथी तारा बन्ने जन्म सार्थक थाय. (३२)
(३३) सामान्यपणे स्त्रीना सम्बन्धथी आवी
पडती उपाधिओ -
आ भवमां पण स्त्रीने योगेचेतन ! चिन्ता अधिकी थाय,