SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री वैराग्य शतक राधानी डाबी आंख वींधवी जोईए जो विधाय तो 'राधावेध' थयो कहेवाय, एक तो त्राजवाना पल्लामां धनुष्य लईने ऊभुं रहे ज मुश्केल छे, बीजुं तेलमां जोतां चक्कर आवे ने पडी जवाय, बाण छोडया पछी पण चक्रना आरा साथे अथडाईने नीचे पडे, तेमांथी पसार थाय तो पण पुतळीना कोईपण अवयव साथे भटकाय पण डाबी आंख वींधवी तो अशक्य ज छे. कोई वीर-बहादुर, कळावान् पुरूष एने पण शक्य बनावी साधे पण धर्माराधन कर्या वगर हारी गयेल मनुष्य जन्म फरी मळे नहीं. (९) (१०) दृष्टान्त आठमुं पूर्णचंद्र दर्शनकच्छप देखी पूर्णचन्द्रने दहमां दूर थये सेवाल. आनन्दे ए जोj जोवा लईने आव्यो निजपरिवार. मळी गये सेवाळ सुधाकर कच्छपथी ये कदी निरखाय. पण सुकृत विणगतनरभव ते पाछो चेतन नहीं ज पमाय विवेचन- एक विशाल खूब ऊंडो अने मोटो द्रह हतो, तेनी उपर जाडी सेवाल-लील बाजी गई हती. उपरथी जोतां पाणी तो देखाय ज नहीं. लील-लील ज देखाय. एक वखत पूनमनी राते पवनना झपाटाथी थोडी लील खसी गइ ने संयोगवश त्यां आवी चडेल एक काचबाने आकाशमां ऊगेलो पूर्णचंद्रमा देखायो. जोईने तेने खब आनंद थयो. पोताना बाळ-बच्चा वगेरे परिवारने चंद्रमा
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy