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घणा बहार पडे छे वैराग्य पोषक पुस्तको क्यारेक ज हाथमां आवे छे. आ . तमारा हस्तकमलमां पुस्तक आव्युं छे तो तेने आद्यन्त बराबर वांचजो अने वैराग्य थोडो घणो पण जीवनमां लाववा प्रयत्न करजो. निर्भय बनवा माटे पण वैराग्य अमोघ साधन छे. राजा भतृहरिए पण पोताना वैराग्य शतकमां बतावेलुं छे के . भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद् भयं मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया भयम् शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयंकाये कृतान्ताद् भयं सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्य मेवा भयम्
भोगमा रोग थवानो भय छे. कुलमां पडवानो, धनमां राजानो, मौनमां दीनतानो, बळमां शत्रुनो, रूपमां वृद्धावस्थानो, शास्त्र जाणनारने वादनो, गुणमां दोषो शोधनारनो (लुच्चानो) भय छे अने कायाने यमनो भय छे आम सर्व वस्तु भयवाळी छे केवळ वैराग्य ज-निर्भय-भयवगरनो छे. आवो जे वैराग्य छे तेना स्वरूपनुं दर्शन करावनारा सो गुजराती लोको विविध छन्दमां अमारा पू.प्र. परमगुरु शास्त्रविशारद पीयूषपाणि पूज्यपाद आचार्य श्री विजय अमृत सूरीश्वरजी
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