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________________ ११६ श्री वैराग्य शतक क्रोडो उपाये कोईथी कदीए न एह पमाय छे. अपूर्व अवसर आ बधो एळे गुमावे शीदने निद्रा त्यजीने स्वस्थ कर तुज चित्तने तुजचित्तने तृणाग्र-जल- बिन्दु समुं छे जीवनने आ वैभवो, समुद्र जलकल्लोल ज्युं देखाव दे छे नवनवो, पत्नी प्रमुखनो प्रेम ते पण स्वप्नना सम जाणवो. समस्त आ संसार जाणो लाकडानो लाडवो. ( शार्दूलविक्रीडित ) मोटुं मंदिर ने विनीततनयो लक्ष्मी न खूटे कदी, ने क्ल्याणकरी वधू - विरहने मित्रो शके ना सही, मानी विश्व सुरम्य एम पडतां संसारमां कैं जनो, जाणीने क्षण नष्ट संग त्यजता कैं संत ए सर्वनो. , विवेचन- हे चेतन ! तुं मरणथी भय शा माटे पामे छे. तारे मरवुं ए चोक्कस छे. जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु-ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादप्रतिहार्ये ऽथ को हि शोचितुमर्हति ॥ जन्मेलानुं मरण नक्की छे ने मरेलाना जन्म नक्की छे. माटे जेमां फेरफार न करी शकाय एवा विषयमां शोक करवो, ए कोने उचित छे ! अर्थात् शोक करवो नकामो छे, तारे आ शरीर एक वखत त्यजवानुं छे. एने तुं गमे तेम साचवीश तो'य छोडवुं पडशे, तारे ए शरीरथी शुं करवानुं छे, तेनो ते कोई दी विचार कर्यो ? चोवीश
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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