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श्री वैराग्य शतक करवामां तारू द्दढ वीर्य-अखुट बल फोरव. पतङ्गभृङ्गमीनेभ-सारङ्गा यान्ति दुर्दशाम् । एकैकेन्द्रियदोषाच्चेद्, दुष्टस्तैः किं न पञ्चभिः ॥ बिभेषि यदि संसारा मोक्षप्राप्ति च काक्षसि । तदेन्द्रियजयं कर्तुं , स्फोरय स्फारपौस्त्रम् ॥ इति पञ्चेन्द्रियविषयासक्तसत्त्वदुःखवर्णनम् ।
अथ ज्ञटित्यात्मश्रेयस्करणप्रेरणाधिकारः (८९ थी ९३) मरण ए नक्की छे. गयेलो समय पाछो आवतो नथी. माटे प्रासाद छोडी आत्मकल्याण करवा कटिबद्ध बनो.
(हरिगीत) . . भयपामीने मृत्यु थकी तुं शीद घर संताय छे, मौक्तिकप्रमुखनी भस्म शाने शक्ति माटे खाय छे, भयभीतने ए मृत्युराक्षस नव त्यजे पण जन्मने, जे नव भजे त्हेने त्यजी कर जन्मनाशक यत्नने, मृत्युतणी साथे नथी मैत्री करी तें मानवी, तेहना भयोथी रक्षनारी छे सुरंगो क्यां नवी,. निश्चय नथी कीधो मरणनां समयनो ज्ञानी कने, शाथी कहे छे आ स्थितिमां काल करीशुं धर्मने जे दिवस ने जे रात्रिओ तुज जीवनमांथी जाय छे.