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श्री वैराग्य शतक (७६) स्त्री मोह-विषय लालसा - धनेच्छा ए
सर्व लाकडाना लाडु जेवा छे,
ए नहि खावामां ज सार छे. छे स्त्री खरेखर शस्त्र ने आ बन्धुओ बन्धन खरे, ने विषय सुख छे विष समा दोलत वळी दो-लत अरे, एम जाणीने हे मित्र ! मारा विरम आ संसारथी आ लाकडानां लाडवामां रसतणो छांटो नथी.
विवेचन:-हे मित्र ! आ संसारने असार समज संसारमा छे शुं ! संसारनी चार चीज तने मोह पमाडी रही छे. पण ए चारे भयंकर छे. तने फसावनारी छे-तारूं अहित करनारी छे, तेमां प्रथम मोहक चीज छे. स्त्री, ए स्त्री नथी पण साचे ज शस्त्र छे-कामदेव- अमोघ अस्त्र, तेनाथी हणायेल तुं तारूं कंईपण करवा समर्थ नहिं था. बीजी छे बन्धुं परिवार, एनो मोह महाबंधन छे, एनाथी बंधायेल तुं दुःखी थईश पण छुटी शकीश नहि, संसारमा खेंचनारी त्रीजी चीज छे, विषय सुख. पण ए ? ए झेर छे, हालाहल छे-कातिल कालकूट छे, किंपाकना फळनी जेम मीठा लागशे पण तने मारी नाखशे, ने चोथी चीज छे दोलत, धन, संपत्ति पण ए दोलत दो-लत ज छे. ए आवे छे. त्यारे तारी छातीमां लात मारे छे. तुं एवो तो अक्कड थईनेछाती काढीने फरे छे के तने कांई पण सूजतुं ज नथी.