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श्री वैराग्य शतक
'वैराग्य शतक' छे. ए एक ज्ञानमार्गनुं साधन छे, तेमां पदे पदे ने शब्दे शब्दे आत्माने तेनी स्थितिनुं भान कराव्युं छे, अनादि काळथी दुःखी थतां अने भवचक्रमां परिभ्रमण करतां चेतनने साचो राह बताव्यो छे. तेमां मुख्यत्वे आठ विषयो उपदेश्या छे. ते आ (१) मानव जन्मनी दुर्लभता. (२) नरकना दुःखोनुं वर्णन. (३) स्त्री- मोह त्याग करवा प्रेरणा. (४) सोळ भावनानुं स्वरूप (५) संसारनी असारता (६) पांचे इन्द्रियोना विषयोथी थता गेरलाभ. (७) शीघ्र धर्म करवा प्रेरणा (८) कल्याणकारि विचारणाओ. आ आठे विषयो एवा सचोट शब्दोमां निरूप्या छे, के जे वांचतां समजु आत्माने संसार उपरथी 'वैराग्य' थया वगर रहे नहि.
'वैराग्य शतक' बाद 'जीवदया प्रतिपाल परमार्हत कुमारपाल-भूपाल कृत आत्मर्निदाद्रात्रिंशिकानो गूर्जरी गिरामां अनुवाद छे. तेमां परमात्माने संबोधीने आत्माने पोतानी पराधीन स्थितिनुं रोमांचक स्वरूप दर्शाव्युं छे. वारंवार वांचवानुं मन थाय एवा भावो तेमां भर्या छे, मोढे करी प्रभु पासे बोलवाथी उन्नतिपथनुं दर्शन थाय छे. आ पुस्तकनी एक एक वात आत्माने हितकारी छे, एके एक विचार वारंवार वांची तेनुं मनन करी हृदयमां अने जीवनमां उतारवा योग्य छे. आ पुस्तक नानुं छे पण सोनुं छे. आमां गुंथायेल कोइपण वस्तु मनः कल्पित