SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७९ श्री वैराग्य शतक (५५) शुभ करणी शीघ्र करो-तेमां क्षण पण विलम्ब न करो. जे काल कर होय शुभ ते आज कर उतावळो, 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' ए सिद्धात जाण खरेखरो नव सांजनी पण वाट जो कल्याणकारी कार्यमां हे बन्धु पामरजीवनी ज्यम सुखदसमयो हारमां. विवेचन : हे बन्धु ! तने धर्म करवा विचार थयो छे. तने तारूं हित करवानी भावना जागी छे. तुं कल्याण साधवा ऊभो थयो छे. तो हवे विलंब न कर, कोईनी पण प्रतीक्षा - राह न जो; जे करवू होय ते जल्दी करी ले. एक शाश्वत सत्य तारा मनमा बरोबर ठसावी द्वे के : श्रेयांसि बहु विघ्नानि' सारा कार्यमां सेंकडो अंतरायो आवे छे' दुर्जनो तुं विलंब करीश तो तारी मनोवृत्ति डहोळी नाखशे, तारा धर्म कृत्यमां हजारो पथरा नाखशे माटे वखत न गुमाव, काल करवानुं होय ते आजे करी ले, काल कोणे देखी छे. सवारनुं सवारे ज करी ले. सांजे करीशुं - घडी पछी करीशं. एम मुदत न पाड, गयेलो समय फरी नहिं आवे; आ तारूं शुभ चोघडीयुं छे ए साधी ले ! पछी पस्तावो थशे, पामरात्मानी जेम-अज्ञानी जीवनी माफक सुखदायि समय हारी जईश, पछी विचार करीश ए काम नहिं लागे. माटे जे शुभ कार्य कर, होय ते शीघ्र कर ने सुखी बन. (५५)
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy