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________________ शिवभूति की कथा नायक था | उसके शरवीर होने के कारण उसे मथुरा के राजा को पकड़ने का हुक्म दिया गया । तब वह सामन्त और मन्त्रियों के साथ रवाना हुआ। तब प्रथम प्रयाण होने पर सामन्त आदि सब को सन्देह हुआ कि-उत्तर और दक्षिण मथुरा में से कौनसी मथुरा लेने का हुक्म है ? और यदि फिर से पूछा जाय तो निश्चय राजा कुपित होगा। इसलिये इस विषय में क्या करना चाहिये ? इस प्रकार वे चिन्तातुर हो गये। तब शिवभूति ने उनको कहा कि-अरे भाइयों ! चिन्ता क्यों करते हो ? किसी भी उपाय से हम दोनों मथुरा लेंगे। लड़के बलवान् हों उसमें कभी भी कोई दोष नहीं माना जाता। विशेष यह कहना है कि-एक तरफ मैं अकेला जाता हूँ और एक तरफ तुम सब जाओ । जो मुश्किल से पकड़ा जाय उसे मैं पकड़ता हूँ और दूसरे को तुम पकड़ो। तब उन्होंके उसमें सहमत होने पर प्रचण्ड शिवभूति ने जाकर सहसा दक्षिण मथुरा के स्वामी को पकड़ा और दूसरों ने उत्तर मथुरा के स्वामी को पकड़ा। पश्चात् उन्होंने रथवीरपुर में आकर उसी समय राजा को बधाई दी । तब शिवभूति के साहस से राजा प्रसन्न होकर कहने लगा कि-हे महाबल सुभट ! तुझे जो चाहिये सो स्पष्टतः मांग । शिवभति ने कहा कि-हे देव ! जो आप सचमुच प्रसन्न हुए हो, तो मुझे इस नगर में रात्रि अथवा दिन चाहे जहां फिरने की आज्ञा दीजिए । राजा ने उसे मंजूर किया। इसलिये शिवभूति अब निर्भय होकर घूमने लगा। वह समय और असमय को न गिनकर घूमा करता था और चौकीदारों से भी रुक नहीं सकता था। . वह अपने घर कभी मध्यरात्रि को आता, कभी उससे जल्दी या देर से आता । उसके लिये उसकी स्त्री उसके आने की राह
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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