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________________ णमोत्थु णं समणस्स भगओ महावीररस @ पू० आगमोद्धारक-आचार्यप्रवर-आनन्दसागरसमिधरेभ्यो नमः आवार्यप्रवर - श्री शान्तिसरि विरचितं धर्मरत्न - प्रकरण । तृतीय-भाग ( अनुवाद, सहित) भावसाधु कैसा होता है ? उत्तर-जो हमेशा निर्वाण साधक योग (व्यापार) को साधन करता हो और सर्व भूतों (जीवों) पर सम (सम दृष्टि रखने वाला) हो वह साधु कहलाता है। शान्ति आदि गुणों से युक्त हो, मैत्री आदि गुणों से ,भूषित हो, और सदाचार में अप्रमत्त हो, वह भावसाधु कहा गया है। यह भावसाधु है, इस प्रकार छमस्थ कैसे जान सकते हैं ? लिंगों के द्वारा। वे लिंग कौनसे ? सो कहते हैं :एयम्स उ लिंगाई सयला मम्मानुसारिणी किरिया । सद्धा पवरा धम्मे पनवणिज्जत्तमुजुभावा ।।७८॥ -
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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