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________________ सुनंदराजर्षि की कथा रहा जान पड़ा, तब केवली को बन्दना करके पूछने लगा कि-हे पूज्य ! यहां से च्यव कर मैं कहां उत्पन्न होऊंगा। साथ ही मुझे किस प्रकार बोधिलाभ होगा? - तव केवली ने कहा कि-हे भद्र ! तू अन्तसमय आध्यान से मरकर श्रीपुर के उद्यान में वानर होगा। और वहां किसी प्रकार जिनबिम्ब को देखकर तुझे बोधिलाभ होगा। यह सुन कर वह देवता तुरन्त उस उद्यान में आया। वहां उसने तुष्ट मन से अत्यन्त ऊचे शिखर की शोभा से हिमाचल के शिखर की अणियों को हंसता, पवन से फरकती हुई ध्वजाओं में रणकती मणि किकिणियों वाला, प्रज्वलित उत्तम कपूर और अगर से मघमघायमान सुगंध से परिपूर्ण, हजार स्तम्भ वाला, मणिजटित चमकीली भीतों वाला श्रीयुगादि जिनेश्वर का यह मन्दिर तैयार किया और स्वयं पूर्व में वानर का आयुष्य सम्पादित किया होने से च्यव कर यह वानर हुआ। ___ अब इसने भटकते-भटकते किसी प्रकार आज से तीसरे दिन पहिले यह जिन-भवन देखा | जिससे इसे जातिस्मरण हुआ। जिससे यह वैराग्य प्राप्त कर मेरे समीप आकर अनशन कर पंचपरमेष्टि मंत्र स्मरण करता हुआ मरा है इस भांति मुनि वानर का चरित्र कह रहे थे इतने में उक्त वानर का जीव सौधर्मदेवलोक के हिमप्रभ नामक उत्तम विमान में चन्द्र समान उज्वल देवांशुक से ढांकी हुई देवशय्या में सीप में मोती की भांति देवरूप में उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होने के अनन्तर तुरन्त ही देवांशुक को दूर करके, बैठा हो अति विस्मित हृदय से चारों ओर देखता हुआ और 'जय-जय नन्दा, जय-जय भदा" इत्यादि हर्षित हृदयवाली देवांगनाओं के मधुर बचन सुनता
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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