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________________ सूत्र के प्रकार पूरे पद के सूत्र विशेष्य पद हैं। जिसे उसे इस प्रकार जोड़ना कि-कितनेक विधि सम्बन्धी सूत्र हैं। जैसे कि-भिक्षाकाल प्राप्त होते मुनि ने असंभ्रान्त व अमूर्छित रहकर, इस क्रम से भक्तपान का गवेषण करना इत्यादि । कितनेक उद्यम सूत्र हैं यथाः-ललाई उतर जाने पर पीले हुए झाड़ के पत्त जैसे गिर पड़ते हैं, वैसा ही मनुष्यों का जीवन है। अतः हे गौतम ! समय मात्र भी प्रमाद मत कर, इत्यादि। वर्णक सूत्र-'ऋद्धा, स्तिमिता, समृद्ध,” इत्यादिक (नगर वर्णन के) प्रायः ज्ञातधर्म-कथादिक अंगों में आते हैं । ___ भय सूत्र-नरक में मांस,रुधिर आदि कहे गये हैं सो कहा भी है कि-नरक में जो रूढ़ि के अनुसार मांस, रुधिरादिक का वर्णन किया है । वे भय दिखाने के हेतु हैं । वरना वहां वैक्रियत्व होने से वे कहां से आवे ? अतः ये भयसूत्र हैं। . उत्सर्ग सूत्र- इन छकाय के जीवों का स्वयं आरम्भ न करना इत्यादिक छकाय की रक्षा के विधायक सूत्र हैं । अपवाद सूत्र प्रायः छेद-ग्रंथ में हैं । अथवा "जब गुणाधिक अथवा समगुण ऐसा अन्य चतुर साथी न मिले, तब अकेले होकर भी काम में (विषय सुख में) आसक्त न होते पाप विवर्जित करके विचरते रहना चाहिये"-इत्यादिक जानो। तदुभय सूत्र वे हैं-जिनमें उत्सर्ग और अपवाद साथ साथ कहे हुए हैं । जैसे कि-'आर्तध्यान न होता हो, तब तक व्याधि को भली भांति सहन करना किन्तु जो आर्त ध्यान होने लगे तो विधि से उसका प्रतिकार करने को प्रवृत्त होना उचित है" इत्यादि।
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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