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________________ शिवभद्र मुनि का दृष्टांत पर श्वेत चामर ढोलने लगी। आगे चलते हुए मागध (भाटचारण) अनेक संग्रामों में उसकी की हुई विजय का वर्णन करने लगे, और कोकिल समान कंठ वाले गवैये उसके महान् गुणों का गान करने लगे। इस प्रकार बहुत काल तक वह गंगा तथा मेरु पर्वत के वनों में तथा जम्बूद्वीप की भूमि पर तथा पद्मवर-वेदिका में क्रीड़ा करके अपने घर की ओर लौटा। दैवयोग से वह कुणाला नगरी पर से जाते हुए भाई को देख कर स्नेहवश नीचे उतर कर प्रीतिपूर्वक उसे कहने लगा कि-हे भाई ! तू जैसे कौआ मृतक पर गिरता है उस भांति इस अत्यन्त निंदनीय-कुल में क्यों आसक्त हो रहा है ? अरे मूढ़ ! यहां की दुगंध के कारण लोग मजबूती से नाक को ढांक कर निकलते हैं। यह तेरी दृष्टि में क्यों नहीं आता? इस स्थान में एक ओर हड़ियों के ढेर पड़े हैं, दूसरी ओर कुत्त भूक रहे हैं और तीसरी ओर गिध और कौओं से भयंकर लगता है। यह भी तेरी दृष्टि में क्यों नहीं आता। यह सुनकर सोमचन्द्र मानो असमय बिजली गिरने से आहत हुआ हो, वैसे दुःखित हो लज्जा से आंखें मीच कर बोला किहे भाई! ऐसा महान् दुःख कौन नहीं समझता है ? किन्तु इतना कह कि-पूर्वभव में किये हुए कौनसे दुष्कर्मों के दोष ने मुझे विमल-कुल में बसने से विमुख करा कर, तेरे समान भाई की प्रीति छुड़ा कर ऐसी नीच जाति के काम काज रूप सागर में गिराया है ? तब शिवचन्द्र ने विस्मित हो विधिपूर्वक रोहिणीदेवी को स्मरण करके पूछा कि-हे भगवती ! मेरे भाई के पूर्वभव का चरित्र कह । ___ तब रोहिणी-देवी ने महान अवधिज्ञान से जानकर उसे उसके पूर्व-भव का सम्पूर्ण वृत्तान्त कह कर स्पष्टतः यह कहा कि-इसने
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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