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________________ शुद्धदेशना पर का भय नहीं रहता तथा विधि से आगम ग्रहण करना फलदायक है । बहुमानपूर्वक निर्मल आशय रख कर गुरु के आधीन रहना यही परम गुरु पाने का बीज है, और उसीसे मोक्ष होता है । ४० इत्यादिक साधु का आचार मध्यमबुद्धि को नित्य कह सुनाना और भावप्रधान आगम तत्त्व तो केवल बुध ही को समझाना चाहिये । वचन की आराधना से धर्म होता है और उसकी बाधा से अधर्म होता है यह धर्म का गुह्य (मर्म) है और यही इसका सर्वस्व है इत्यादि बातें बुध ही को कहना चाहिये । अथवा पारिणामिक, अपारिणामिक और अतिपारिणामिक इन भेदों से पात्र तीन प्रकार के हैं, इत्यादि पात्र का स्वरूप समझकर श्रद्धावन्त पुरुष पात्र के अनुग्रह का हेतु अर्थात् उपकारक जो भाव अर्थात् शुभ परिणाम उसकी वृद्धि का करने वाला, वह भी सूत्रभणित याने आगमोक्त हो उसकी प्ररूपणा करे और उन्मार्ग याने मोक्ष से प्रतिकूल मार्ग को दूर ही से वर्जित करे। सारांश यह कि-सम्यक् रीति से पात्र का स्वरूप समझ कर उसके भाव को बढ़ाने वाली, अनुवृत्यादिक दोष से रहित और सिद्धान्त के मार्ग के अनुसार देशना करे । जैसे कि श्रेणिक के प्रति निर्ग्रन्थ साधु ने की थी । - निग्रंथ मुनि की कथा इस प्रकार है मगध देश के मुकुट समान राजगृह नगर का श्रेणिक नामक राजा था । वह दुःस्थित जन को परिपालित करने में तत्पर रहता था । वह एक समय साथ में चलते हुए शृंगार शोभित. अतःपुर से तथा दौड़धूम से नमते हुए सामन्त और मन्त्रियों के समूह सहेत - घोड़े, हाथी, रथ और पदाति के सैन्य से संपूर्ण दिशाचक्र
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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