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________________ १६६ धर्मरत्न की योग्यता पर इधर त्रिवर्ग पालते हुए प्रभाचन्द्र राजा को हरिषेण और पद्म नामक दो पुत्र हुए। वे दोनों सकल कलाओं से पूर्ण होकर पूर्णिमा के चन्द्र समान समस्त जनों को सुखदायी होकर ऐसे शोभने लगे मानो राजा के अन्य दो भुजदण्ड हों। अब एक समय राजा को अन्नादि में अरोचक भाव हुआ, जिससे वह मरुभूमि में आ पड़े हुए हंस के समान प्रतिदिन कृश होने लगा । तब अच्छेअच्छे वैद्य बुलाये गये । उन्होंने अनेक क्रियाएँ की किन्तु कुछ भी गुण नहीं हुआ। तब राजा इस प्रकार विचार करने लगा। इन द्रव्योषधों से क्या होने वाला है ? अब तो ज्येष्ठ पुत्र को युवराज पद पर स्थापित कर, मैं धर्मोषध करू तो ठीक । इतने में सहसा उत्पन्न हुए कठिन शूल से वैद्यों के उपचार करते भी पद्मकुमार मर गया । तब पुत्र की मृत्यु सुनकर राजा अत्यन्त शोक से संतप्त हो वज्राहत पर्वत के समान मूछोवश भूमि पर गिर पड़ा। जब पवनादिक के उपचार से वह चैतन्य वाला हुआ तो इस प्रकार विलाप करने लगा- . .. - हे पुत्र! तू कहां गया है ? मुझे उत्तर क्यों नहीं देता? हाय ! पूर्णचन्द्र को ऊगते ही तुरन्त राहु ने ग्रस लिया ! हायहाय ! फूलता हुआ वृक्ष विशाल हाथी ने उखाड़ डाला ! हायहाय ! समुद्र के किनारे आये हुए वहाण तोड़ डाले, अरे रे! विशाल निधान दृष्टि आते ही, दुर्भाग्य मे हर लिया। बादल ऊंचा चढ़ा कि-पवन ने क्षणभर में छिन्न-भिन्न कर दिया । हाय-हाय ! इसी भांति ग्रह कुमार राज्य के उचित हुआ और देव ने हर लिया। इस प्रकार प्रलाप करते हुए राजा को किसी प्रकार मन्त्रियों मे समझाया। तब उसने उसका मृतकृत्य किया। पश्चात् समयानुसार शोक कम होने पर वह मन में ऐसा विचार करने लगा।
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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