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________________ १६४ धर्मरत्न की योग्यता पर करना और चातक जैसे मेघ की सेवा करते हैं वैसे आर्य जनों का सेवन करना । हे बन्धु ! सद्भक्ति से श्रद्धावान जनों को भाई मानकर पूजना और नागपति जैसे अमृत को सम्हाल कर रखता है, वैसे तू वसुधा को न्याय से रखना। तू पृथ्वी का आधार है । तेरा आधार कोई नहीं । अतः हे वत्स ! तू अपने द्वारा ही अपने को सदैव धारण कर रखना। ऐसा कह कर श्रीप्रभ राजा चुप हुआ, तो प्रभाचन्द्र ने शिर नमाकर ये सब शिक्षाएँ स्वीकृत की । पश्चात् श्रीप्रभ राजा नहा धोकर रत्नालंकार से विभूषित हो किनारी वाले रेशमी वस्त्र पहिनकर याचकों को महादान देता हुआ, सकल संघ की पूजा करके भाई की बनवाई हुई हजारों मनुष्यों से ढोई जाने वाली पालखी पर, मानों पुष्पक विमान पर कुबेर चढे, वैसे चढ़कर बैठा। पश्चात् चतुरंगी सेना सहित विनय-नम्र भाई उसके पीछे चलने लगा और नागरिक जन उच्च स्वर से जय-जय शब्द पुकारने लगे। इस भांति बड़ी धूमधाम से नगरी के बीच से होकर गुरु के चरणों से पवित्र उद्यान में आने पर पालखी से उतरा । ____ अब उस भूपति ने अपने भुजदंड से जैसे भूमि का भार उतारा वैसे अपने शरीर पर से सर्व आभूषण उतारे। पश्चात् गुरु ने सिद्धान्तोक्त विधि से उसे दीक्षा देकर परमानन्द देने वाली वाणी से इस प्रकार शिक्षा दी। ___ कछुवे को चन्द्र का दर्शन हुआ। इस दृष्टान्त से दुर्लभ जिन दीक्षा पाकर शयन, आसन आदि सर्व चेष्टाएँ यतनापूर्वक करनी चाहिये । क्योंकि-यतना धर्म की उत्पादक है। यतना धर्म की
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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