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________________ १५० धर्मरत्न की योग्यता पर तथा जिसका शौर्य सदैव प्रबल शत्रुओं के कुलक्षय पर्यन्त (पहुँचता ) था। जिसका त्याग (दान ) मांगने वालों की इच्छा पयंत ( पहुँचता था) तथा जिसकी भूमि समुद्र पर्यंत पहुँचती थी, और जिसकी भक्ति जिनेश्वर के दो चरण कमल को नमन करने तक पहुँचती थी। और जिसके अन्य दोषों के बल को तोड़ने वाले शेष गुण निरवधि थे, ऐसा राजा श्रीचंद्र उस नगरी का पालन करता था। __ कमल में रहने वाली और सदैव रक्त चरण वाली दो उज्वल पंख वाली हंसनी के समान राजा के हृदय रूप कमल में रहनेवाली सदाचरण के रागवाली और उभय पक्ष से पवित्र हंसी नामक उसकी रानी थी। उनके समस्त शत्रुओं को हराने वाले दो पुत्र थे, उनमें ज्येष्ठ का नाम श्रीप्रभ और छोटे का नाम प्रभाचन्द्र था। ___ वड़ा कुमार गांभीर्य गुण का सागर था, रूप से काम को जीतने वाला था, स्वभाव ही से सौम्याकार था और लोकप्रिय गुणरूप मणि का करंड था । अक्र र परिणति रूप झरने वाली नदी का हिमालय था. शिवमुख के घातक पातक के डर रूप कमल को विकसित करने के हेतु सूर्य समान था। शठता रूप लता को काटने के लिये दरांते के समान था, दाक्षिण्य रूप स्वर्ण का मेरु था, अकार्य से सदा लज्जारूप स्फुरित भौरी को रहने के लिये कमलिनी के समान था। जीवदया रूप कुमुदनी के लिये चन्द्र समान था, माध्यस्थ्यरूप हाथी का विन्ध्याचल था. गुणरागी जनों का मुकुट था, सुकथा कहने के मार्ग का पथिक था, जिनधर्म में कुशल सुपक्ष रूप कक्ष (घास) को बढ़ाने में मेघ समान था, अत्यन्त विस्तृत दीर्घदर्शित्व रूप ताराओं का आकाश था।
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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