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________________ शिवभूति की कथा वह अपना लोच करने लगा। तब गुरु ने अनवस्था दोष से डर कर उसे दीक्षित किया। पश्चात् बलवान होने से राजा उसकी प्रव्रज्या छुड़ावेगा। इस प्रकार शंका करके वे वहां से रवाना होकर देशांतर में आ पहुंचे। ___ बहुत काल पश्चात् राजा ने उसे भक्तिपूर्वक बुलाया । तब कृष्णाचार्य के साथ शिवभूति उस नगर में आया। तब राजा ने उसके दर्शन करने के हेतु उसे अपने महल में बुलाया और उसे सुन्दर रत्न कंवल देकर सम्मानित किया ! उसने वह अपने गुरु को बताया । तब वे बोले कि-यह महा मूल्यवान् क्योंकर लिया ? तब उसने कहा कि-राजा की दाक्षिण्यता से लिया है। तब गुरु ने उस कम्बल को उसे ही दे दिया, पर वह उस पर मुग्ध होकर उसे काम में न लाते सम्हालने लगा। यह जानकर उसका मोह तोड़ने के लिये एक समय जब कि वह बहिरम को गया था तब गुरु ने उसके निषद्या बना डाले, जिससे शिवभूति के मन में किंचित् अप्रीतिक (द्वषभाव ) उत्पन्न हुआ। तब एक समय गुरु ने नीचे लिखे अनुसार जिनकल्पी और स्थविरकल्पी के लिये शास्त्र प्रसिद्ध उपधि का विचार चलाना शुरू किया। जिनकल्पी को बारह उपकरण होते हैं। स्थविरकल्पी को चौदह होते हैं और आर्याओं को पच्चीस होते हैं। इससे विशेष औपहिक उपकरण हैं। जिनकल्प में दो, तीन, चार, पांच, नव, दस, ग्यारह और बारह उपकरण । इस प्रकार उपकरण के विषय में आठ विकल्प हैं। दो उपकरण मुहपत्ति और रजोहरण और उसमें एक कल्प मिलाते तीन और दो कल्प ( ओढ़ने का वन ) मिलाते चार होते हैं। तीन कल्प मिलाते पांच होते हैं। इन प्रत्येक के साथ
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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