SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थावचा पुत्र का दृष्टांत भव्यो ! जो तुम कल्याणमय पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सदैव आयतन सेवो । पांच प्रकार के आचार को पालने वाले साधुओं को आयतन जानो। आयतन के सेवन से झाड़ जिस भांति पानी के सींचने से बढ़ता है वैसे ही गुण बढ़ते हैं और सूर्य के किरणों से जैसे शोत नष्ट होता है वैसे ही दोष जाल नष्ट होते हैं। यह सुन सुदर्शन सेठ उनको पूछने लगा कि- हे भगवन् ! आपका धर्म किं मूलक है ? तब गुरु बोले कि-हे सुदर्शन ! हमारा धर्म विनयमूल है । वह दो प्रकार का है:--अगारि विनय और अनगारि विनय । पहिले में बारह व्रत हैं और दूसरे में महावत हैं। ___ अब हे सुदर्शन ! तेरा धर्म किं मूलक है ? वह बोला, हमारा धर्म शौचमूल है और निविघ्नता से स्वर्ग देता है । तब गुरु बोले-जीव प्राणीवध आदि से खूब मलीन होकर पुनः उसी से कैसे पवित्र होता है ? क्योंकि रुधिर से खराब हुआ वस्त्र रुधिर से शुद्ध नहीं हो सकता। - यह सुन सुदर्शन संतुष्ट हो प्रतिबोध पाकर गृहस्थ धर्म अंगीकार करके उसका नित्य पालन करने लगा। यह बात शुक परिव्राजक को ज्ञात होने पर उसे विचार आया कि___ सुदर्शन ने शौचमूल धर्म त्याग कर विनयमूल धर्म स्वीकार किया है, अतः सुदर्शन से वह मत छुड़वाना चाहिये ताकि वह पुनः शौचमूल धर्म कहे, यह विचार कर वह एक सहस्त्र परिबाजकों के साथ सौगंधिका नगरी में जहां परित्राजकों की बस्ती थी वहां आकर ठहरा, पश्चात् धातुरक्त वस्त्र पहिनकर कुछ परिब्राजक साथ में ले उस बस्ती से निकल सौंगधिका के बीचोंबीच होकर सुदर्शन के पास आया ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy