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________________ थावच्चा पुत्र का दृष्टांत है, अतः दूसरा भी जो कोई दीक्षा लेने को उद्यत हो उसे श्रीकृष्ण आज्ञा देते हैं व उसके कुटुम्ब का वे पालन करेंगे" ___ यह उद्घोषणा सुनका संसार से विरक्त चित्त वाले राजकुमार आदि एक हजार व्यक्ति दीक्षा लेने को उद्यत हुए। उन सब का दीक्षा महोत्सव राजा ने कराया। इस प्रकार थावश्चाकुमार एक हजार व्यक्तियों के साथ निष्क्रान्त हुआ। वह पढ़कर चौदह पूर्वी हुआ। तब भगवान ने अपना परिवार उसे सौपा, पश्चात वह उम्र तप करता हुआ महि-मंडल पर विचरने लगे। उसने बहुत से लोगों को जैन धर्मी किये-वैसे ही सेलकपुर में पांचसौ मंत्रियों सहित सेलग राजा को श्रावक किया। वह मुनिजनों के आचार को प्रकट करता, जगत् के निस्तार का संकल्प धरता, दर्प को झट से प्रतिहत करता, महाबली कंदर्प को जीतता, चन्द्र समान उज्वल चारित्र को पालता तथा चित्त को प्रसन्न रखता हुआ विचरता हुआ सौगन्धिका नगरी में . आया । . ... ...उसको नमन करने के लिये नागरिक जन दौड़ा दौड़ करते हुए रवाना हुए, यह देख सुदर्शन सेठ भी कौतुक से वहां चला । वह वहां आकर रत्नत्रय के आयतन (घर), भव रूपी तरु को निर्मूल करने को विशाल हाथी के समान और मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का नाश करने को अरुण समान थावञ्चाकुमार महा मुनि को देख कर संतुष्ट होकर चरणों में पड़ा (प्रणाम किया)। वहा सुदर्शन सेठ को तथा उक्त महा पर्षदा को ऊंचे व गम्भीर शब्द से आचार्य इस प्रकार धर्म कहने लगे:--हे
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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