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________________ सुदर्शन की कथा लिये जाते हैं तब वह भी रथ पर आरूढ हो वहां जाकर भक्ति से विधि पूर्वक भगवान को वन्दना कर एकाग्र हो धर्म श्रवण करने लगा । संसार सकल दुःखों का कारण होने से असार है, मोक्ष में महा सुख है और चरित्र का पालन करने से वह प्राप्त होता है। ____ यह सुन वह संवेग पाकर जिनेश्वर को कहने लगा कि- माता को पूछ कर, मैं आपके पास दीक्षा लूगा भगवान् बोले कियही बात योग्य है । तब थावच्चापुत्र घर जाकर माता को प्रणाम करके पूछने लगा कि-हे माता ! मैं दीक्षा लूगा । तब उसकी माता स्नेह मुग्ध होकर रोती हुई बोली कि- प्रव्रज्या दूसरों को भी बहुत दुष्कर है जिससे तेरे समान सुखी को तो और भी अधिक दुष्कर होगी। हे पुत्र! तू निष्ठुर होकर मुझ आशावती को तथा इन बत्तीस विनयवती स्त्रियों को छोड़कर कैसे जावेगा ? अतः दान भोग से भी कम न हो ऐसे इस कुलक्रमागत धन को जो कि तेरे पूर्व सुकृत से तुझे प्राप्त हुआ है दान धर्म में व्यय करता हुआ विलास कर और पुत्र परिवार होने के अनन्तर, तेरी उम्र बड़ी होने पर, तेरा आत्म हितार्थ करना । माता के इस प्रकार कहने पर वह बोला कि-जीवन अनित्य है उसमें ऐसा करना योग्य नहीं। व अपने हृदय से अपन एक बात सोचते हैं और देव के योग से दूसरा ही कुछ हो जाता है इत्यादिक युक्ति - प्रयुक्ति की भावना पर से उसका दृढ़ उत्साह जानकर थावच्चा सार्थवाही ने उसे अपनी इच्छा न होने पर भी अनुमति दी। पश्चात् उसने श्रीकृष्ण के पास जाकर पुत्र का सर्व वृत्तांत कह सुनाया और
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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