SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आरोग्य नामक ब्राह्मण का दृष्टांत जानो वैसे ही स्तंभादि में अथड़ाते देह टूट जाती है सो प्रपतन । ____ उन आतंक तथा उपसर्गों का संग याने संपर्क होने पर भी निष्कर रहे, वहां आरोग्य द्विज के समान आतंक के संग में तथा उपसर्ग के संग में "कामदेव श्रावक" के समान निष्कंपायमान रहना चाहिये। वहां आरोग्य नामक ब्राह्मण का दृष्टांत इस प्रकार हैश्रीकृष्ण का शरीर जिस प्रकार सुचक्र से विभूषित था वैसे ही जो सजनों के चक्र ( समूह ) से विभूषित होते हुए लाखों गजों (हाथी) से संयुक्त बहुसंख्य लक्ष्नी से भरपूर उज्जयिनी नामक नगरी थी । वहां देवदत्त नामक ब्राह्मण था, वह जितेन्द्रिय व कुलीन था । उसकी अत्यानन्दकारिणी नन्दा नामक भार्या थी । उनके एक पुत्र हुआ, वह जन्म से ही रोगग्रस्त रहता था। जिससे दूसरा नाम नहीं रखने से वह रोग नाम से प्रख्यात हुआ. एक दिन उनके घर कोई मुनि भिक्षा के लिये आये, तब वह ब्राह्मण अपने उक्त पुत्र को उनके चरणों में डालकर बोला कि:हे प्रभु! आप कृपा करके इस बालक की रोग-शान्ति का उपाय कहिये । तब मुनि बोले कि-भिक्षा भ्रमण करते हुए मुनियों को बात करने में दोष लगता है, जिससे वह बात नहीं कही जा सकती। तब ब्राह्मण मध्याह्न के समय अपने पुत्र को साथ में लेकर उद्यान में जाकर मुनि को नमन करके उक्त बात पूछने लगा, तब वे महर्षि इस प्रकार बोले- पाप से दुःख होता है और धर्म से शीघ्र ही नष्ट होता है, अग्नि से जलता हुआ घर, पानी के प्रवाह से बुझाया जाता है। भली-भांति पालन किये हुए धर्म से सकल दुःख शीघ्र ही नष्ट होते हैं और पुण्य से ऐसे दुःख परभव में भी
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy