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________________ आनन्द शावक का दृष्टांत हे भगवन् ! आपकी अनुज्ञा से.........इत्यादि सर्व वृत्तान्त कहकर अन्त में उन्होंने कहा कि, इसी से मैं वहां से जल्दी आया हूँ, अतः हे भगवन् ! इसको आलोचना आनन्द श्रावक ने लेना चाहिये कि मैंने ? तब भगवान गौतमादिक सब साधुओं को आमंत्रण करने के अनन्तर गौतम को इस प्रकार कहने लगे:--हे गौतम ! उसकी आलोचना तू ही ले--व प्रायश्चित आदि ले और इस विषय में आनन्द श्रावक को खमा। ___ तए णं से भयवं गोयमे समणस्स एयमठु पडिसुणेइ, (२) तस्स ठाणस्स आलोएइ जाब पांडवजइ, आणंदं च समणोवासयं एयम→ खामेइ-समणेणं भगवया महावीरेणं सद्धिं बहिया जणवयविहार विहरइ। तब भगवान गौतम ने वीर प्रभु की बात स्वीकार की उस विषय की आलोचना देकर प्रायश्चित लिया और आनन्द श्रावक के पास जाकर उसे इस सम्बन्ध में खमा आये पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के साथ वे बाहिर के प्रदेश में विचरने लगे। .. अब आनन्द श्रावक इस प्रकार बीस वर्ष पयंत धर्म का पालन कर एक मास की संलेख ना करके समाधि से शरीर को यहां छोड़ सौवर्म देवलोक में अरुणाभ विमान में चार पल्योपम की आयुष्य से देवता हुआ व वहां से च्यवन होने पर महा विदेह से मोक्ष को जावेगा। इस प्रकार हे भव्य जनो ! तुम विचार पूर्वक इस आनन्द श्रावक का उदार चरित्र सुनकर तुम्हारी शक्ति के अनुसार व्रत का भार ग्रहण करो, जिससे कि संसार समुद्र का पार पाओ। इस प्रकार आनन्द श्रावक का दृष्टान्त समाप्त हुआ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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