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________________ पौषध व्रत का वर्णन और अतिचार ईर्यापथ शुद्धि से गुण है व दूसरा तो अजान होकर जैसे तैसे चलता है । ४० यहां जो केवल दिक परिमाण व्रत का संक्षेप करना बताया है वह उपलक्षण मात्र है, जिससे शेष प्राणातिपातादिक तों का संक्षेपण इसी व्रत में जान लेना चाहिये, अन्यथा दिन और मास आदि के लिये भी उनका संक्षेपण आवश्यकीय होने से अधिक व्रत हो जाने पर बारह व्रत की संख्या टूटेगी । अब पौषध रूप तीसरा शिक्षा व्रत कहते हैं: वहां पौष याने पुष्टि सो उपस्थित विषय में धर्म की जानो, उसे जो धरे याने करे सो पौषध, अर्थात् अष्टमी, चतुर्दशी, पौर्णिमा और अमावस्या के दिन करने का व्रत विशेष सो पौषध है । -- पौषध चार प्रकार का हैः- आहारपौषध, शरीर सत्कारपौषध, ब्रह्मचर्यपौषध और अव्यापारंपौषध । वह प्रत्येक दो प्रकार का है:- देश से व सर्व से। पौषध लेने पर आहार व शरीरसत्कार का देश से व सर्व से परिहार करना चाहिये और ब्रह्मचर्य तथा अव्यापार का देश से व सर्व से पालन करना चाहिये । इसके भी पांच अतिचार वर्जनीय हैं, यथा - अप्रत्युपेक्षित - दुः प्रत्युपेक्षित - शय्यासंस्तारक, अप्रमार्जित - - दुःप्रमा जित शय्यासंस्तारक अप्रत्युपेक्षित-दुः प्रत्युपेक्षित-उच्चार-प्रश्रवणभूमि, अप्रमार्जित - दुःप्रमार्जित - उच्चार-प्रश्रवणभूमि और पौषध का सम्यग् अपालन | ये पांचों अतिचार स्पष्ट हैं, तथापि अप्रत्युपेक्षित याने आंख -
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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