________________
प्रकाशकीय-निवेदन
प० पू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराज आदि ठाणा वि० सं० २०१० की साल में कपड़वंज शहर में मीठाभाई गुलालचन्द के उपाश्रय में चातुर्मास बीराजे थे | उस वक्त विद्वान बालदीक्षित मुनिराज श्री सूर्योदयसागरजी महाराज की प्रेरणा से आगमोद्धारक - प्रन्थमाला की स्थापना हुई थी । इस प्रन्थमाला ने अब तक काफी प्रकाशन प्रगट किये हैं ।
सूरीश्वरजी की पुण्य - कृपा से यह 'धर्म - रत्न - प्रकरण' का आचार्य श्री देवेन्द्रसूरि रचित टीका का हिन्दी अनुवाद के दूसरा भाग को आगमोद्धारक - प्रन्थमाला के ३३ वे रत्न में प्रगट करने से हमको बहुत हर्ष होता है ।
इसका संशोधन प० पू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराज के तत्त्वावधान में शतावधानी श्री लाभसागरजी गणि ने किया है । उसके बदले उनका और जिन्होंने इसके प्रकाशन में द्रव्य और प्रति देने की सहायता की है उन सब महानुभावों का आभार मानते हैं।
लि०
प्रकाशक