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________________ ३२६ . परार्थ कामभोग पर उसे एक समय मुनि को देखकर जाति-स्मरण उत्पन्न हुआ। जिससे उसे पूर्वभव में पालन किया हुआ निर्मल चारित्र याद आया । जिससे वह तीव्र विष वाले सर्प के शरीर के समान कामभोग को दूर ही से त्यागता । वह उद्भट वेश नहीं पहिनता, शृंगार युक्त वचन कदापि नहीं बोलता, मित्र के साथ भी नहीं खेलता और दुईम हाथी, घोड़ों को भी नहीं दमता (दौड़ाता) था, वह माता पिता की भक्ति करता, मुनि के चरणों में नमन करता, जिनपूजन में उद्युक्त रहता और सदैव परमार्थ के शास्त्र विचारता हुआ रहता था। पश्चात् राजा विचार में पड़ा कि यह कामदेव समान रूपवान पुत्र किस प्रकार राजपुत्रोचित भोगविलास में लगेगा। ___ इस दुनिया में राजपुत्रों ने नव-यौवन के प्रारम्भ मौजी होना और दुश्मनों को जीतने के लिए कठिन उद्यम करना, यह कहा जाता है । किन्तु यह कुमार तो मुनिवर के सदृश शास्त्रांचंतन में तत्पर होकर शान्त हो रहता है। अतएव जो पराक्रम-हीन हो जावेगा तो बागियों से पराजित हो जावेगा । इसलिये अब ऐसा करू कि- इसका विवाह कर दू, ताकि आपही आप उनके वश में होकर सब कुछ करेगा। क्योंकि कहा जाता है कि:-जब तक छेक (चालाक) रहता है, तब तक मानी, धर्मी, सरल और सौम्य रहता है, जहां तक मनुष्य को स्त्रियों ने घर के नट के समान भमाया न हो। यह सोचकर राजा ने प्रीति से कुमार को विवाह करने के लिये कहा । तब उसने इच्छा न होते भी पिता के अनुरोध से वह बात स्वीकार की । पश्चात् कुमार का समकाल ही में बड़े - बड़े सरदारों के वंश में जन्मी हुई आठ कन्याओं से पाणिग्रहण कराता है।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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