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________________ दत्त की कथा उसने एक लक्ष सुवर्ण मुद्राएं लेकर कहा कि बस मुझे इतने (धन) की आवश्यकता है तब भंडारी ने उसे उतना धन देकर तत्काल बिदा किया । २९७ अब उसने तुरंत ही गौतमद्वीप का मार्ग जानने वाले पुरुष बुलाये, नौकर रखे, तथा वहाण तैयार किये। वह पुराने गोबर का खाद्य एकत्रित करने लगा और स्वयं फक्त लंगोट पहिर कर धूल से भरता हुआ खाद्य उपाड़ते भी शरमाया नहीं । लोग हंसने लगे कि, अहो ! दत्त ने कैला ऊंचा माल खरीदा है ? अब तो इसका दारिद्र दूर ही हो जायगा । दूसरे बोलने लगे कि भला हो उस भले राजा का कि- जिसने ऐसे पुण्यवान afe को कर्ज दिया है । तीसरे बोले कि यह तो बेचारा पागल है, किन्तु अरे ! राजा भी पागल ही जान पड़ता है, कि जो ऐसे को अपनी पूजी देता है। ऐसा बोलते हुए धूर्त्त लोग उसे पकड़कर रोकने लगे, तथा करुणा वाले लोग उसे मना करने लगे, तथापि वह तो पट्टक में लिखी हुई बात को साधने ही में तत्पर रहा । i वह गोबर से वहाण भरकर गौतम द्वीप में गया । वहां पट्टक में लिखी हुई बात सिद्ध करके अपने नगर को आया । अब बहुत से कंडों से भरे हुए उसके वहाण देखकर लोग हंसने लगे कि - यह एक माल से दूसरा माल बड़ा ही अच्छा लाया है। अब उसे दाण (महसूल) लेने वाले लोग राजा के समीप ले गये तब राजा ने पूछा कि तू क्या माल लाया है ? बोला तब वह
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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