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________________ २९६ विहीकता पर उसमें कहा हुआ काम मन को बराबर सावधान रखकर करना । ऐसा करने से तेरे अतुल धन हो जावेगा। इस प्रकार पिता का वचन याद आने पर उसने गुपचुप एकान्त में डब्बे को खोलकर उसमें से उक्त पट्टक निकाला । उसमें यह लिखा था कि गौतम नामक द्वीप में सर्वत्र रत्नमय घास है और उसे सुरभि नाम की गायें चरती हैं । अतः इस देश से गोबर से भरे हुए वहाण द्वारा वहां जाना, और वहां उस छाण को पत्तों वाले झाड़ की छाया में जगह जगह डाल देना । पश्चात् अपन ने जरा दूर छिप रहना वे सुरभि गायें दुपहर को व रात्रि को आकर वहां सुख से बैठेगी। वे बहुत सा गोबर पटकेगी। वह इकट्ठा करके नौका (वहाण) में भर घर लाकर उसके पिंड अग्नि से जलाना। उस में पांचों रंग के सुन्दर रत्न मिल जावेंगे। इस प्रकार पट्ट में लिखा था। उसका अर्थ समझ कर दत्त अपने मन में इस भांति विचारने लगा। कोई भी बुद्धिमान हितेच्छु होकर, कुछ कहे तो वह बात सत्य ही होती है, तो फिर अतिशय वत्सल और चतुर पिता का लिखा हुआ कैसे असत्य हो ? यह सोच वह कपट से पागल बन कर सारे नगर में ऐसा बकने लगा कि-मेरे पास बुद्धि बहुत है, किन्तु धन नहीं। तव धन के नाश से बेचारा दत्त पागल हो गया है, ऐसा सुनकर करुणापूर्ण हो राजा ने उसे बुलाया और पूछा कि, यह क्या बात है ? तब वह बोला कि- मेरे पास बुद्धि है, किन्तु धन नहीं तम राजा की आज्ञा से कोषाध्यक्ष ने उसे धन का ढेर बताया।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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