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________________ चंद्रोदर नृप चरित्र २९३ भोजन करने वाला और तीन पल्योपम के आयुष्य वाला और उनपचास दिन तक जोडले का पालने वाला हुआ। दश प्रकार के कल्पवृक्ष ये हैं:-मत्तग, भृग, तुडितांग, ज्योति, दीप, चित्रांग, चित्ररस, मणिकांग, गेहाकार और नग्न । ___मत्तगों में सुखपूर्वक पिया जा सके ऐसा मद्य होता है । भृग में भाजन होते हैं । तुडितांग में निरन्तर अनेक प्रकार के बाजे बजते हैं। दीपशिख, और ज्योतिशिख प्रकाश करते हैं । चित्रांग में फूल की मालाएं होती हैं। चित्ररस में से भोजन मिलता है। मणिकांग में से दिव्य आभूषण मिलते हैं । भवनवृक्ष भवन रूप में उपयोग में आते हैं और नग्नो में से अनेक प्रकार के वस्त्र मिलते हैं। इन दश प्रकार के कल्पवृक्षों द्वारा पूर्ण होते सकल भोगों में वह मग्न हो गया था, और उसके पृष्टिकरंड यांने पसलियों में दो सौ छप्पन हड्डियों की पृष्टियां (कमाने ) थी । वह अल्पकषायो, ईर्ष्या विवर्जित और रोग रहित रह, मर कर सौधर्मदेवलोक में कुछ कम तीन पल्योपम के आयुष्य से देवता हुआ। वहां से च्यव कर हे वसायुध नरेन्द्र ! वह तेरा यह पुत्र हुआ है, और मुनि को दान देने के प्रभाव से उसने इतनी ऋद्धि पाई है। . तथा यह तो किस गिनती में है, किन्तु यह तो इसी भव में मोक्ष को जाने वाला है। यह सुनकर चन्द्रोदर को जातिस्मरण हुआ। इस प्रकार पुत्र का चरित्र सुनकर राजा ने अपने छोटे पुत्र गिरिसेन को राज्य में स्थापित कर स्वयं चन्द्रोदर के साथ दीक्षा
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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