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________________ २६४ गुरुवंदन की विधि - तैंतीस आशातना ये हैं-गुरु के आगे चले १ बराबरी से चले २ पीछे लगा हुआ चले ३ इसी प्रकार खड़े रहने को तीन ६ और बैठने की तीन मिलकर ९ आशातना होती हैं ९ आचमन याने स्थंडिल में प्रथम पानी ले १० गमनागमन की आलोचना पहिले करे ११ गुरु की आज्ञा न सुने १२ किसी को गुरु के पहेले बुलावे १३ गुरु के होते हुए दूसरे के पास भिक्षादि आहार का आलोयण करे १४ आहारादिक दूसरे को बतावे १५ दूसरे को पहिं ने बुलाकर पीछे गुरु को बलावे १६ गुरु बिना दूसरे को मीठा खिलावे १७ स्वयं मिष्ट खावे १८ गुरु के बुलाने पर न सुने १९ गुरु को कठिन वचन बोले २० संथारे पर बैठा हुआ उत्तर दे २१ क्या कहते हो' इस प्रकार बोले २२ 'तुम करो' ऐसा कहे २३ तिरस्कार करे २४ उपदेश सुनकर हर्षित न हो २५ 'तुम को याद नहीं' यह कहे २६ कथा भंग करे २७ सभा भंग करे २८ गुरु की कही हुई बात को आप दुहरावे २९ गुरु के संथारे को पैर लगावे ३० गुरु के आसन पर बैठे ३१ गुरु से ऊँचे आसन पर बैठे ३२ और गुरु के समान आसन पर बैठे ३३ । । वत्तीस दोष इस प्रकार हैं-अनाहत, स्तब्ध, अपविद्ध परिपिंडित, टोलगति. अंकुश, कच्छपरिगित, मत्स्योद्वरी मन:प्रदुष्ट, वेदिकाबद्ध, भजंत, भयभीत, मैत्री, गारव, कारण, स्तैनिक, प्रत्यनीक रष्ट, तर्जित, शठ हीलित विपरिकुचित, दृष्टादृष्ट, शृग, कर, करमोचन, आश्लिष्टानाश्लिष्ट, ऊन, उत्तरचूलिक, मूक, ढड्ढर और चुडलितुल्य । आदर से वंदन करना सो आहत और उससे विपरीत सो अनाहत है । स्तब्ध दो प्रकार से होता है-द्रव्य से और भाव से इसकी चौभंगी होती है उसमें द्रव्य से दोष की भजना है।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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