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________________ २३८ . निर्मल दर्शन पर उसके समीप जाफर पूछने लगा कि-हे भद्र ! तू क्यों रोता है ? तब वह गद्गद् स्वर से इस प्रकार बोला। कपिल्लापुर में सिंधुर सेठ की वसुन्धरा स्त्री के गर्भ में लाखों उपायों से मैं एक पुत्र उत्पन्न हुआ। मेरा नाम सेन रखा गया। अब मुझे छः मास हुए इतने में धन दौलत के साथ मातापिता की मृत्यु हो गई। तब से अति करुणा लाकर जिन जिन स्वजनसंबंधियों ने मुझे पाला वे सब मेरे दुष्कृत रूप यम से मारे जाकर नष्ट हो गये हैं। इस प्रकार विषवृक्ष के समान अनेक जनों को संताप का हेतु मैं अभी तक देह व दुःख से बढ़ता रहा हूँ। किन्तु अभी भी जले हुए पर दग्ध के समान महान दुःखकारी ज्वरादि अनेक रोग मेरे शरीर में उत्पन्न हुए हैं। तथा बीच बीच में कोई भूत व पिशाच अदृष्ट रह कर मेरे अंग को ऐसा पीड़ित करता है कि मैं कह भी नहीं सकता। जिससे जीवन से उदास हो कर मैं निःसहाय हो कर बड़ वृक्ष में अपने गले में फांसी लेने लगा। इतने में वह फांसी झट से टूट पड़ी। तब मैं वैराग्य पाकर इन मुनि के पास पूछने आया हूँ कि "पूर्व में मैंने क्या किया होगा ?" और जन्म ही से मुझ पर पड़े हुए दुःखों का स्मरण करके रोता हूँ। यह कह कर उस पथिक ने उक्त मुनि से अपना वृतान्त पूछा। ___ अब वह साधु क्या कहेंगे, सो जानने को विस्मयरस से परिपूर्ण हुए अमरदत्त आदि जन एकाग्र मन से सुनने लगे। अब उन मुनि ने कहा कि-हे पथिक ! तू यहां से तीसरे भव में मगध देशान्तर्गत गुव्वर ग्राम में देविल नामक कुलपुत्र था।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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