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________________ चारुदत्त का दृष्टांत २११ औषधियों से निशल्य करके जख्म भरकर सचेत किया तब वह बोला कि-वैताठ्य-पर्वत के शिवमंदिर नगर में महेन्द्रविक्रम राजा का में अमितगति नामक पुत्र हूँ। मैं विद्याधर होने से धूम्राशेख नामक मित्र के साथ स्वेच्छा से खेलता हुआ, हरिमंत-पर्वत पर आया । वहां मेरे मामा हिरण्यसोम की सुकुमालिका नामक पुत्रो को देखकर मैं कानातुर हो मेरे घर आया । इस बात को मेरे मित्र के द्वारा मेरे पिता को खबर पड़ने पर उन्होंने उस कन्या से मेरा विवाह किया । अब धूत्रशिख भी मुझे उसका अभिलाषी जान पडा । पश्चात् में सुकुमालिका तथा उक्त मित्र के साथ यहां आया । अब उसने यहां मुझे प्रमत्त देखकर इस झाड़ के साथ बींध दिया, तथा मेरी स्त्री को हरण करके वह चला गया। तू ने मुझे छुड़ाया इसलिये तेरे ऋण से मैं मुक्त नहीं हो सकता। यह कह कर वह विद्याधर चला गया। तब श्रेष्ठिपुत्र भी अपने घर आया । अब उसके पिता ने उसका स्वार्थों मामा की मित्रवती नामक कन्या से विवाह किया। तो भी वह रागरहितपन से रहता था तब पिता ने उसे दुर्ललित मंडली में भर्ती किया । वह वसंतसेना नामक वेश्या के घर रहकर उसके साथ आसक्त हो गया। वहां उसने बारह वर्ष में सोलह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ उड़ा दी। तब वसंतसेना की ऊपरी अक्का (नायिका) ने उसे निर्धन हुआ देख घर से निकाल दिया । तब वह अपने घर आया तो उसे पिता की मृत्यु की खबर हुई । जिससे वह चित्त में बहुत दुःखी हुआ। · पश्चात् स्त्री के आभूषण बेचकर अपने मामा के साथ उसीरबर्तन नगर में व्यापार के निमित्त गया और वहां उसने खूब रूई
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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