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________________ २१० अर्थ की अनर्थता पर जन्म, जरा, मृत्यु को टाल नहीं सकता। इष्टवियोग और अनिष्टसंयोग को हर नहीं सकता । परभव में साथ नहीं चलता और प्रायशः चिन्ता, बंधुओं में विरोध, धरपकड़, मारकाट और त्रास का कारण है, इसलिये ऐसे धन को धन का स्वरूप जानने में कुशलपुरुष क्षण भर भी भला करने वाला नहीं मानता। धन को ऐसा जानकर बुद्धिमान पुरुष उसमें चारुदत्त के समान कदापि गृद्ध नहीं होता । क्योंकि-भावश्रावक होता है, वह अन्याय से धनोपार्जन करने में प्रवृत्त नहीं होता और उपार्जित में तृष्णा नहीं रखता। क्योंकि-आवक में से आधे से अधिक तो धर्म में व्यय करना और शेष से किसी प्रकार घर का निर्वाह करना, ऐसा विचार करके वह उसे यथोचित रीति से सातों क्षेत्रों में खर्च करता है । चारुदत्त का दृष्टांत इस प्रकार है । यहां लुटेरों से रहित चंपा नामक नगरी थी । वहां सुजन रूप कमलों को विकसित करने के हेतु भानु समान भानु नामक सेठ था । उसकी अति निर्मलशील-धर्म वाली सुभद्रा नामक स्त्री थी । उसका चारुदत्त नामक उत्तम हाथी के दांत समान उत्तम गुणवाला पुत्र था । वह मित्रों के साथ खेलता हुआ विद्याधर दंपति के पदचिन्हों का अनुसरण करके एक समय कदली-गृह में पहुंचा और वहां उसने तलवार पड़ी हुई देखी। __ वहां आस पास देखते उसने एक विद्याधर को एक झाड़ में खीलों से वींधा हुआ देखा तथा उसकी उक्त तलवार की भ्यान में तीन औषधियां देखीं । तब उसने उसको उन
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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