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विजयकुमार का दृष्टांत
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उसका पिता भी हर्षित हो कुमार को प्रारंभ से लेकर वृत्तान्त पूछने लगा, तब कुमार ने उक्त सकल वृत्तान्त कह सुनाया, इतने में वहां एक दूत आया । उसने आहवमल्ल को कहा कि-आपको अयोध्या नगरी में जयवर्य राजा शीघ्र ही अपनी सेवा के लिये बुलाते हैं। दूत का वचन सुनकर विजयकुमार कहने लगा कि-अरे ! इस भारतवर्ष में हमारा भी दूसरा स्वामी हो सकता है क्या ?
___ तब कुमार को राजा कहने लगा कि-हे वत्स ! वह राजा अपना सदैव से स्वामी है, और वह अपना साधर्मी, सुमित्र और विशेषकर अपनी ओर ठोक कृपा रखता है । अतः मुझे अवश्य वहां जाना चाहिये, और तू चिरकाल में आया है अतः तेरी माता के पास रह जिससे कि-वह प्रसन्न रहे।
तब जैसे तैसे समझाकर कुमार पिता की आज्ञा लेकर थोड़े ही दिनों में वहां हाथी, रथ तथा पैदलों के साथ आ पहुँचा। वहां अवसर पाकर कुमार ने अपने परिजनों के साथ राजसभा में आकर उस राजा को नमन किया, जिससे उसे भली भांति सन्मान मिला | पश्चात् उसके विज्ञान, कला, लावण्य, रूप, नीति, उदारता और पराक्रम आदि गुणों से उस नगरी में उसका निर्मल यश फला।
इतने में उस सभा में राजा जयवर्य की पुत्री शीलवती अपने पिता को प्रणाम करने के लिये बहुत से परिवार के साथ आई। वह ताक कर कुमार को देखने लगी, जिससे सखियां उस पर हंसने लगी, व वह पिता की शरम से वापस अपने घर आ गई।