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________________ ब्रह्मसेन की कथा १८५ तब वे लघुकर्मी होने से जाति स्मरण प्राप्तकर सब देवताओं से लिंग प्राप्त कर व्रत धारण किया। अब सूर्योदय होने पर सहसा उन्हें साधु के वेष में देखकर, प्रणाम करके पूछने लगा कि-यह पूर्वापरविरुद्ध तुम्हारा क्या हाल हो गया । तब पवित्र करुणा के निधान वे मुनि बोले कियहां सद् लक्ष्मी से परिपूर्ण तुरुमिणी नामक नगरी है। वहां केशरि नामक ब्राह्मण के निर्मल चित्त वाले हम आसन्न कल्याणी चार पुत्र थे । वे पिता के मर जाने पर शोकातुर हो, भव से उदास होकर, तीर्थ देखने की इच्छा से देशाटन को निकले । उन्होंने मार्ग में भूख आदि से मूर्छित एक मुनि को देखा, तो वे भक्ति से उसे शीघ्र सचेत करने लगे। ____ पश्चात् वे लक्ष्यपूर्वक उनसे धर्म सुनकर दीक्षा ले उनके साथ विचरते रहकर चौदह पूर्व सीखे । तो भी वे कुछ जाति-मद करते रहकर उत्तम अनशन कर, मर करके प्रथम स्वर्ग को गये । वहां से च्युत होकर वे सब इस भरतक्षेत्र में जातिमद से चोरों के कुल में हम उत्पन्न हुए । ___ वे हो हम आज तेरे घर को लूटते, तेरी अपनी आत्मा के प्रति की हुई अनुशिष्टि सुनकर जाति स्मरण पाकर व्रत लेकर तू भी आसन्न शिव संपत्ति वाला होने से विधि सहित धर्मानुष्ठान में दृढ़ मन रखने वाला है, अतः तुझे धर्मलाभ होओ। यह कह वे त्वरा रहित होते भी मुक्तिपुरी को जाने में सत्वर होने से अन्य स्थल में विचरने लगे। ब्रह्मसेन भी चिरकाल तक उत्तम व्रतों का पालन कर, आराधना पूर्वक मर करके अव्यय पद को प्राप्त हुआ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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