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________________ व्रत के भंग 03 कर्मक्षय कर मोक्ष को गया । सुदर्शन सेठ भी चिरकाल सम्यक्त्व की प्रभावना करता हुआ व्रत पालन करके ( स्वर्ग को गया ) सुख का भाजन हुआ। इस प्रकार आगम सुनने में रसिक बने हुए सुदर्शन ने श्रेष्ठ फल पाया अतः हे भव्यजनो तुम भी धर्मद्र म की वाडी रूप धर्म श्रुति में यत्नवान बनो । इस भांति सुदर्शन सेठ की कथा है - भंग भेयइयारे - वयाण सम्मं वियारेह ।। ३५ ॥ अब दूसरा लिंग कहते हैं: व्रत क्रिया में आकर्णन रूप प्रथम भेद कहा अब जानना नामक दूसरे भेद का वर्णन करने के लिये गाथा का उत्तरार्ध कहते हैं । मूल का अर्थः- त्रतों के भंग, भेद और अतिचार भली भांति विचारे । टीका का अर्थः - व्रत याने अणुव्रत, जिनका कि स्वरूप इसी गाथार्ध में भेद व अतिचार के प्रस्ताव में कहने में आने वाला है, उनके भंग "दुविह तिविहे" आदि अनेक प्रकार उनको सम्यक् याने शास्त्रोत विधि से जाने याने समझे । यथाः- यहां भंग इस प्रकार है-छः भंगी, नवभंगी, इकवीसभंगी, ऊनपचास भंगी और एकसौ सैंतालीस भंगी । वहां छः भंगी इस प्रकार है: द्विविध त्रिविध प्रथम भंग, द्विविध द्विविध दूसरा भंग, द्विविध इकविध तीसरा भंग, इकविध त्रिविध चौथा भंग, इकविध त्रिविध पांचवा भंग, इकविध इकविध छठा भंग ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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