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________________ भद्र सेठ का दृष्टांत १४९ रूप दीपक में होने वाले इस व्रत भंग रूप काजल से कौन अपने आपको मैला करता है ? ' इस प्रकार बाप के कहने पर भी वह भारी लोभ कर्म से मलीन रहकर उस बात को जरा भी स्वीकार न करते पूर्ववत् ही अन्याय में तत्पर रहने लगा। __ अब एक चोर उसके पास दो कुंडल सहित हार लाया, वह धन-सेठ ने थोड़े धन में ले लिया। एक समय उसने चोर से रत्नावली ली, इतने में विमल नामक राजा का भंडारी उसकी दूकान पर आ पहुँचा-उसके कहने से धन उसे कपड़े दिखाने लगा, इतने में उसकी गोद में से रत्नावली गिर पड़ी। ___उसे ले, पहिचान कर विमल पूछने लगा कि-सेठ ! यह क्या है ? तब धन घबराकर कुछ भी नहीं बोल सका, जिससे विमल बोला कि-इसके साथ दूसरा भी राजा का हार तथा कुडल आदि माल तेरे पास होना चाहिये, ऐसा मैं मानता हूँ, अतः जल्दी वह मुझे दे। ____ अन्यथा राजा जान लेगा तो धन तथा शरीर से छूटने वाला नहीं, इतने में मार मार करता कौतवाल वहां आ पहुँचा । उसने धन को पकड़ कर बांध लिया और विमल के उस विषय में पूछने पर उसने कहा कि-खोजते २ यह एक चोर हाथ लगा . है, अतः इसे पकड़ा है। पश्चात् उसने सब को राजा के आभरण आदि चोरने की बात कह सुनाई, व उसने उसको रत्नावली सहित राजा के पास उपस्थित किया । तब राजा ने भ्रकुटी चढ़ाकर धन को ऐसी डाट बताई कि-उसने रत्नावली, कुडल तथा हार आदि सब माल राजा को सौंपा।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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