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________________ श्रावस्तिके श्रावको समुदाय का दृष्टांत 32 किन्तु शंख अभी तक क्यों नहीं आये ? तब पुष्कली श्रावक बोला कि मैं जाकर उसे बुला लाऊं तब तक तुम विश्राम करो यह कहकर वह शंख के घर आया उसे आता देखकर उत्पला उठी व सात आठ कदम उसके सन्मुख आई | ११७ पश्चात् वन्दना करके आसन पर बैठने की निमंत्रणा की, और आगमन का प्रयोजन पूछने लगी तब वह बोला कि हे भद्रे ! शंख के सदृश निर्मल शंख कहां है ? वह बोली कि वे तो पौषधशाला में पौषध लेकर बैठे हैं। तब उसने पौषधशाला में जाकर गमनागमन आदि ईर्यावही प्रतिक्रमण किया । पश्चात् हर्ष पूर्वक शंख को बन्दना करके पुष्कली बोला कि - हे भद्र ! अशन-पान तैयार हो गया है, अतः आप शीघ्र पधारिये । शंख बोला कि मैंने तो पौषध लिया है अतः तुम्हारी जो इच्छा हो सो करो । यह सुन पुण्कली अन्य श्रावकों के पास आया । उसने आकर शंख की बात कही, तब उन श्रावकों ने किंचित् अभिनिवेश करके भोजन किया। इधर शंख रात्रि के अंतिम प्रहर में विचारने लगा कि मैं प्रातःकाल वीर प्रभु को वन्दना करके धर्म श्रवण कर पौषध पारूंगा । अब सूर्योदय होते ही शंख अक्षुब्ध वासना से पैदल चल कर वीरप्रभु के चरणों में नमन करने गया । च वीर को नमन करके बैठा इतने में अन्य श्रावक भी वहां आये और वे भी जिन को नमन करके बैठ गये तब भगवान इस प्रकार धर्म कहने लगे । .अहो ! भवितव्यता के योग से यह मनुष्य भव पाकर तुमको सकल क्लेशों का कारण अभिनिवेश कदापि न करना चाहिये ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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