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________________ १०४ विधिपूर्वक स्वाध्याय करने पर -- ---- ----- ---- -- -- - किया है । पश्चात् श्येन के पछने पर यह व्यंतर बोला कि-हे. भद्र ! पर्व में मैं इस घर का स्वामी था और मेरे दो पुत्र थे। उनमें से छोटा पुत्र मुझे अधिक प्रिय था, जिससे मैंने संपूर्ण गृह का सार उसे दिया और बड़े पुत्र को थोड़ा सा माल देकर अलग घर में रखा। तब मेरे बड़े पुत्र ने दर्बार में फर्याद करके एकाएक मुझे मरवा डाला और छोटे भाई को कैद में डलवा कर यह घर उसने स्वयं अधिकार में लिया। __छोटा भाई कैदखाने में मर गया और मैं मरकर यहां व्यन्तर हुआ, जिससे मैने अपने ज्ञान से बड़े पुत्र को यह कार्यवाही मान ली। जिससे मैंने कोप करके बड़े पुत्र को उसके परिवार सहित मार डाला और दूसरा भी यहां जो रात्रि में रहता तो मैं उसे मार डालता था। ___ किन्तु इस समय तेरा स्वाध्याय सुनकर मैं प्रतिबोधित हुआ हूँ, और अपने मन का बैर मैंने त्याग दिया है अतः तू मेरा गुरु 'है जिससे यह निधान सहित घर मैं तुझे देता हूँ । पश्चात् निधि स्थान बताकर तत्काल वह देवता अदृश्य हो गया तदन्तर सेठ ने यह बात राजा तथा मंत्री आदि को कही। तब राजा विरमित हुआ तथा मंत्री व स्वजन सम्बन्धी लोग प्रसन्न हुए तथा पुत्र भी शान्त हुए और सेठानी भी धर्म में तत्पर हुई । इस प्रकार अंतरंग रिपु की सेना को जीतकर श्येन सेठ ने चिरकाल गृहिधर्म का पालन कर, प्रव्रज्या ले अनुक्रम से शाश्वत पद प्राप्त किया। __इस प्रकार श्येन सेठ सदैव स्पष्ट शुद्ध भाव से स्वाध्याय में लीन रहकर सकल अर्थ प्राप्त कर सका अतएव विवेक रूप
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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