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________________ चक्रदेव की कथा ८१ निकलना सचमुच कठिन है। इसलिये हम अनशन करें कि जिससे यह मनुष्य भव निरर्थक होने से बचे । चन्दन के यह कहते ही उसका दक्षिण नेत्र स्फुरण हुआ । साथ ही चन्द्रकान्ता की वाम चक्षु स्फुरित हुई, तब चंदन बोला कि, हे प्रिये ! मैं सोचता हूँ कि इस अंग स्फुरण के प्रमाण से अपना यह संकट अब अधिक काल तक नहीं रहेगा। इतने में वहां नंदिवर्द्धन नामक सार्थवाह जो कि रत्नपुर नगर की ओर जा रहा था, आ पहुँचा । उसने अपने सेवकों को पानी लेने के लिये भेजे। वे ज्योंहो कुए में देखने लगे कि उनको चंदन व चन्द्रकान्ता दृष्टि में आये । जिससे उन्होंने सार्थवाह को कहकर मांची द्वारा उनको बाहर निकाले । ___ पश्चात् सार्थवाह के पूछने पर चन्दन ने सर्व वृत्तांत कह सुनाया. तदनन्तर वे अपने नगर की ओर रवाना हुए, इस प्रकार पांच दिन मार्ग में व्यतीत किये । छठे दिन चलते २ उन्होंने राजमार्ग में सिंह द्वारा फाड़कर मारा हुआ एक मनुष्य देखा, उसके पास द्रव्य को भरी हुई बसनी मिल जाने से उन्होंने जाना किहाय-हाय ! यह तो बेचारा अधनक ही है। पश्चात् उक्त द्रव्य ले रत्नपुर में आकर अतिशय विशुद्ध परिणामों से उस द्रव्य को उन्होंने सुपात्र में व्यय किया। तत्पश्चात् विजय वर्दनसूरि से निर्दोष दीक्षा ग्रहण कर चंदन शुक्र देवलोक में सोलह सागरोपम की आयुष्य वाला देवता हुआ. वहां से च्यवन करके इस भरत क्षेत्र के अन्तर्गत रथवीरपुर नामक नगर में नंदीवर्द्धन नामक गृहपति की सुन्दरी नाम की भार्या की कुक्षी से वह पुत्र हुआ। उसका नाम अनंगदेव रखा गया तथा वह अनंग (काम) के समान ही सुन्दर रूपशाली हुआ,
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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