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अशठ गुण पर
भाता (नाश्ता) तथा द्रव्य ले चन्दनसार अधनक को साथ में लेकर रवाना हुआ, वे दोनों व्यक्ति साथ में लिये हुए भार को बारी-बारी से ले जाने लगे. क्रमशः चलते-चलते वे उक्त प्राचीन कुए के पास पहुँचे, उस समय दासी पुत्र के पास द्रव्य की बसनी थी तथा चन्दनसार के पास भाता था।
उस समय पूर्व भव के अभ्यास से दासी पुत्र विचार करने लगा कि यह शून्य जंगल है, सूर्य भी अस्त हो गया है इससे खूब अंधकार हो गया है। इसलिये इस सार्थवाह पुत्र को इस कुए में डालकर मेरे साथ के द्रव्य से मैं आनंद भोगू । यह सोच वह महा कपटी, कहने लगा कि-हे स्वामी ! मुझे बहुत तृषा लगी है। तब सरल स्वभावी चन्दनसार ज्योंही उक्त कुए में पानी देखने लगा त्यों ही उस महापापी ने उसे कुए में ढकेल दिया, और आप वहां से भाग गया।
अब चन्दनसार सिर पर भाते की गठड़ी के साथ पानी में गिरा ! वह ( जीता बचकर) ज्योंही बाजू की पाल में चढ़ा त्योंही उसका हाथ उसमें स्थित चन्द्रकान्ता को जाकर लगा । तब चन्द्रकान्ता भयभीत होकर “ नमो अरिहंताणं " का उच्चारण करने लगी। इस शब्द से उसे पहिचान कर चन्दन बोला “ जैन धर्मियों को अभय है" । यह सुन उसे अपना पति जानकर चन्द्रकान्ता उच्च स्वर से रोने लगी। पश्चात् सुख दुःख की बातों से उन्होंने रात्रि व्यतीत करी।
प्रातःकाल सूर्योदय के अनन्तर उक्त भाता दोनों ने खाया, इस प्रकार कितनेक दिन व्यतीत करते भाता संपूर्ण हो गया । अब चन्दन कहने लगा कि, हे प्रिये ! जैसे गंभीर संसार में से ऊंचा चढ़ना कठिन है, वेसे ही इस विकट कुए में से भी ऊपर