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अशठ गुण पर
उसने श्री देवसेन आचार्य से गृहि-धर्म अंगीकार किया।
उक्त अधनक भी सिंह द्वारा मारा जाने से बालुकाप्रभा नारकी में जाकर, वहां से सिंह हुआ । वहां से पुनः अशुभ परिणाम से उसी नारकी में गया। पश्चात् बहुत से भव भ्रमण करके वहीं सोम सार्थवाह की नन्दमती भार्या के गर्भ से धनदेव नामक पुत्र हुआ। ___ निष्कपटी अनंगदेव और कपटी धनदेव को पुनः वहां परस्पर प्रीति हुई । वे दोनों व्यक्ति द्रव्योपार्जन के हेतु किसी समय रत्नद्वीप में गये। वहां से बहुत सा द्रव्य प्राप्त करने के अनन्तर कितनेक दिनों में अपने नगर की ओर लौटे इतने में धनदेव ने अपने मित्र को ठगने का विचार किया।
जिससे उसने किसी ग्राम के बाजार में जा दो लड्डू बनवाये, पश्चात् एक में विष डालकर सोचा कि- यह लड्डू मित्र को दूगा । किन्तु मार्ग में चलते चित्त आकुल होने से उसकी याद दास्त बदल गई । जिससे उसने मित्र को अच्छा लड्डू दिया
और विषयुक्त स्वयं ने खाया । जिससे अति तीव्र विष की दुःसह, पीड़ा से पीड़ित होकर धनदेव धर्म के साथ ही जीवन से भी रहित होकर मर गया।
इससे अनंगदेव उसके लिये बहुत शोक कर, उसका मृतकर्म करके क्रमशः अपने नगर में आया और उसके स्वजन सम्बन्धियों से सब वृत्तान्त कहा।
पश्चात् उनको बहुत सा द्रव्य दे, अपने माता पिता आदि की अनुमति लेकर अनंगदेव ने पूर्व परिचित श्री देवसेन गुरु से उभय लोक हितकारी दीक्षा ग्रहण की।