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अशठ गुण पर
से मिला है ? तब चक्रदेव विचार करने लगा कि- मित्र की धरोहर को कैसे प्रकट करू, इससे वह बोला कि यह मेरा निज का है। कोतवाल बोला- तो इस पर चन्दन का नाम क्यों है ? चक्रदेव वोला-किसी भी प्रकार से नाम बदल जाने से ऐसा हुआ जान पड़ता है। कोतवाल बोला- जो ऐसा है तो बता कि इस पात्र में कितने मूल्य का सुवर्ण है ? चक्रदेव बोला-चिरकाल से रखा हुआ है, अतएव मुझे ठीक-ठीक स्मरण नहीं, तुम्ही देखलो. कोतवाल बोला- हे भांडारिक ! इसमें कितना द्रव्य लगा है ? उसने उत्तर दिया कि-दस हजार । तब बही निकलवा कर देखा तो सब उसी अनुसार लिखा हुआ पाया, तब कोतवाल चक्रदेव को कहने लगा कि- हे भद्र ! सत्य बात कह दे । ____ चक्रदेव ने विचार किया कि, मुझ पर विश्वास धरने वाले, मेरे साथ मिट्टी में खेलने वाले सहृदय मित्र का नाम कैसे बताऊँ ? यह सोचकर पुनः बोला कि- यह तो मेरा ही है । कोतवाल बोला- तेरे घर में पर-द्रव्य कितना है ?
चक्रदेव बोला- मेरा तो स्वतः का ही बहुत-सा है, मुझे पर की आवश्यकता ही क्या है। तब कोतवाल ने सारे घर की खोज करके उक्त छिपाया हुआ द्रव्य पाया. जिससे उसने क्रोधित होकर चक्रदेव को बांध कर राजा के सन्मुख उपस्थित किया।
राजा उससे कहने लगा कि- तेरे समान अप्रतिहत चक्र सार्थवाह के पुत्र में ऐसी बात संभव नहीं, इसलिये जो सत्य बात हो सो कह दे । तब परदोष कहने से विमुख रहने वाला चक्रदेव कुछ भी नहीं बोला। जिससे राजा ने उसको नाना प्रकार से विडंबित करके देश से निर्वासित कर दिया।
अब चक्रदेव के मन में बड़ी खिन्नता उत्पन्न हुई और महान्