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चक्रदेव की कथा
परायण सुना जाता है । यज्ञदेव बोला- हे महाराज ! वृक्ष भी इस द्रव्य को पाकर अपनी पींड से घेर लेते हैं । राजा बोला - वह तो बड़ा कुलीन सुनने में आता है । यज्ञदेव बोला- महाराज ! इसमें निर्मल कुल का क्या दोष है ? क्या सुगन्धित पुष्पों में कीड़े नहीं होते ? राजा बोला- जो ऐसा ही है तो उसके घर की झड़ती लेना चाहिए | यज्ञदेव बोला- आपके सन्मुख क्या मेरे जैसे व्यक्ति से असत्य बोला जा सकता है ।
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तब राजा ने कोतवाल तथा चन्दन श्रेष्ठी के भंडारी को बुलाकर कहा कि तुम चक्रदेव के घर जाकर चोरी गये हुए माल की शोध करो ।
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तब कोतवाल विचार करने लगा कि अरे ! यह तो असम्भव बात की आज्ञा दी जा रही है । क्या सूर्य बिम्ब में अन्धकार का समूह पाया जाता है ? तो भी स्वामी की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए, यह सोचकर वह चक्रदेव के घर पर आया और कहने लगा कि - हे भद्र ! क्या तू चन्दन के चोरी गये हुए द्रव्य के विषय में कुछ जानता है ?
चक्रदेव बोला- नहीं, नहीं ! मैं कुछ भी नहीं जानता । कोतवाल बोला- तो तूं मुझ पर जरा भी क्रोध न करना, क्योंकि मैं राजा की आज्ञानुसार तेरे घर की कुछ तपास करूंगा । चक्रदेव बोला- इसमें क्रोध करने का क्या काम है ? क्योंकि न्यायवान् महाराजा की यह सब योजना केवल प्रजा पालन ही के लिए है ।
तब कोतवाल उसके घर में घुसकर ध्यानपूर्वक देखने लगा तो उसने चन्दन के नाम वाला स्वर्ण पात्र देखा । तब कोतवाल खिन्न-चित्त हो पूछने लगा कि - हे चक्रदेव ! तुझे यह पात्र कहाँ