________________
७४
अशठ गु
पर
सार्थवाह का घर लूटकर उसका धन चक्रदेव के घर में रखना व बाद में राजा को कहकर इसे पकड़ा कर इसकी सर्व-सम्पत्ति जप्त करवाना।
तदन्तर उसने वैसा ही कर चक्रदेव के समीप आकर कहा कि हे मित्र ! मेरा यह द्रव्य तू तेरे पास घर में रख ले। तब सरल हृदय चक्रदेव ने वही किया। __ इतने में नगर में चर्चा चली कि चन्दन सार्थवाह का घर लूट गया है । यह सुन चक्रदेव ने यज्ञदेव को पूछा कि- हे मित्र ! यह द्रव्य किसका है ? तब वह बोला कि-यह मेरा द्रव्य है, किन्तु पिता के भय से तेरे यहां छिपाया है, अतएव हे चक्रदेव ! तू इस विषय में लेश-मात्र भी शंका मत कर।
इधर चन्दन श्रेष्ठी ने अपना जो-जो द्रव्य चोरी गया था, वह राजा से कहा, जिससे राजा ने नगर में निम्नाङ्कित उद्घोषणा कराई । जिस किसी ने चन्दन का घर लूटा हो, वह इसी वक्त मुझे आकर कह जावेगा तो उसे दंड नहीं दिया जावेगा, अन्यथा बाद में कठिन दंड दिया जावेगा।
. पांच दिन व्यतीत होने के उपरांत पुरोहित पुत्र यज्ञदेव राजा के पास जाकर कहने लगा कि- हे देव ! यद्यपि अपने मित्र का दोष प्रकट करना योग्य नहीं । तथापि यह अति विरुद्ध कार्य है, यह सोचकर मैं उसे अपने हृदय में छुपा नहीं सकता कि चन्दन का द्रव्य अवश्य चक्रदेव के घर में होना चाहिए। ___राजा बोला- अरे ! वह तो बड़ा प्रतिष्ठित पुरुष है । वह ऐसा राज्य-विरुद्ध काम कैसे कर सकता है ? तब यज्ञदेव बोला महाराज ! महान पुरुष भी लोभान्ध होकर मूर्ख बन जाते हैं । राजा बोला अरे ! चक्रदेव तो सदैव संतोष रूपी अमृत पान में