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विमल की कथा
आऊं। उसकी इस इच्छा पर विमल बोला कि - तुम्हारी इच्छा से तुम आओ, इसमें मुझे क्या पूछते हो। __ अब वे एक नगर के समीप आ पहुँचे, वहां रसोई के लिये विमल ने अग्नि जलाई। इतने में पथिक ने आकर विमल से अग्नि मांगी । तब विमल कहने लगा कि-हे पथिक ! तुझे खाना हो तो मेरे पास खा ले, परन्तु अग्नि आदि भयंकर वस्तु तो मैं तुझे नहीं दे सकता । कारण कि शास्त्र में ऐसी वस्तुए देने की मनाई की गई है। ___ इसी से कहा भी है कि- मद्य, मदिरा मांस, औषध, बूटी, अग्नि, यंत्र तथा मंत्रादिक वस्तुएँ पाप भीरु श्रावकों ने कदापि किसी को नहीं देनी चाहिये। और भी कहा है कि-अग्नि, विष, शस्त्र, मद्य और पांचवां मांस ये पांच वस्तुए चतुर पुरुषों ने किसी से न तो लेना और न किसी को देना ही चाहिये ।
तव वह पथिक क्रोधित हो कहने लगा कि - रे दुष्ट निकृष्ट व दुष्ट ! तू धर्मिष्ठता का ढोंग कर मेरे साथ इस प्रकार उत्तर प्रत्युत्तर करता है ? यह कह वह लोगों को डराने के लिये इस प्रकार अपना समस्त शरीर बढ़ाने लगा कि जिससे मानो, आकाश भी भयातुर होकर ऊंचा चढ़ गया । तथा वह विमल को कहने लगा कि-अरे ! मैं अत्यंत भूखा हूँ । इसलिये रसोई करने को मुझे अग्नि दे, अन्यथा मैं तेरे प्राण हरुगा । तब विमल बोला कि -हे भद्र ! इन चंचल प्राणों के लिये कौन पाप-भीरु ऐसा पापमय कदम धरे। ___ जो इन अस्थिर, मलीन और परवश प्राणों से स्थिर, निर्मल और स्वाधीन धर्म साधन किया जा सकता हो, तो फिर और क्या चाहिये। अतएव तुझे करना हो सो कर, पर