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पापभीरु गुण पर
अनुपम थी। उनके सदैव विनय भक्ति करने वाले विमल और सहदेव नाम के दो पुत्र थे।
बड़ा भाई विमल स्वभाव ही से पाप-भीरु था और छोटा भाई सहदेव उससे विरुद्ध स्वभाव वाला था । वे दोनों किसी समय वन में खेलने गये। वहाँ उन्होंने एक मुनि को देखा । उनके निर्मल चरण कमलों को नमन करके दोनों जन हर्षित हो कर उनके पास बैठ गये। तब मुनि ने उनको उचित व सकल जीव हितकारी धर्मोपदेश दिया। ___ सकल कर्मलेप से रहित देव, विशुद्ध गुणवान् गुरु और दयामय धर्म, ये इस जगत में रत्नत्रय कहलाते हैं। यह उपदेश सुन उन्होंने प्रसन्न हो सम्यक्त्व आदि गृहि (श्रावक) धर्म स्वीकार किया, कारण कि- यति धर्म की दुर्धर धुरा धारण करने में वे असमर्थ थे।
वे एक दिन पूर्व देश में माल लेने के लिए जा रहे थे। इतने में मार्ग के बीच में मिले हुए किसी पथिक ने विमल को इस प्रकार पूछा कि- भला भाई ! कौन-सा मार्ग सुगम और विशेष इंधन, घांस तथा पानी से भरपूर है, सो हमको बताओ? तब अनर्थ दंड भीरु विमल बोला कि- इस सम्बन्ध में मैं कुछ नहीं जानता । तब पुनः वह पथिक बोला कि-हे सेठ ! तुमको किस ग्राम अथवा नगर की ओर जाना है ? तब विमल ने कहा किजहां माल सस्ता मिलेगा, वहां जाऊँगा । पथिक पुनः बोला कितुम्हारा नगर कौनसा है कि-जिसमें तुम रहते हो। तब विमल बोला कि-राजा के नगर में रहता हूँ, मेरा तो कोई नगर है ही नहीं।
पथिक बोला, हे विमल ! जो तू कहे तो तेरे साथ मैं भी