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लोकप्रियता गुण पर
जनों को इष्ट होकर अनुपम सौंदर्य के रंग से रंगी हुई यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। (तब) सुख पूर्वक सर्वकलाए सीखी हुई, लावण्य गुण से देवांगनाओं को हँसने वाली, श्रावक कुल में जन्मो हुई गृहस्थ धर्म को पालती तारा, श्री, विनया और देवी नामक चार निमल शोलयुक्त महान् श्रेष्ठियों की कन्याओं से उसने एक ही साथ पाणिग्रहण किया।
वह व्यवहार शुद्धि से तथा प्रायः पाप कर्मों से दूर रह कर सुखसागर में निमग्न हो प्रसन्नचित्त से समय व्यतीत करता था। इस न्याय पूर्ण और सदा सुखी नगर में सबसे अधिक सुखो कौन है ? इस प्रकार एक दिन राज सभा में बात निकली। तब एक व्यक्ति बोला कि समस्त सुभग जनों में शिरोमणि समान इभ्य श्रेष्ठ का पुत्र विनयंधर यहां अतिशय सुखी है। कारण किजिसके पास कुबेर के समान धन है, इन्द्र तुल्य लोकप्रिय जिसका रूप है, जीव के समान निर्मल जिसकी बुद्धि है और विशाल हस्ती जैसे नित्य दान (मदजल) झरता है वैसा नित्य जिसका दान हुआ करता है। जिसकी चारों प्रियाएं अत्यन्त सुन्दर रूपमयी है कि जिनको देखकर देवांगनाएं चुपचाप कहीं छिपजाने से मैं मानता हूं कि दृष्टि गोचर भी नहीं होती। इत्यादिक अनेक प्रकार का उसका अनुपम वर्णन सुन कर कामबाण के जोर से पीड़ित हुआ राजा उनकी ओर रागान्ध हो गया। ये त्रिभुवन मनहरणी स्त्रियां मुझे किस प्रकार प्राप्त हों ? इस प्रकार चिन्तातुर - चित्त उक्त राजा को यह विचार सूझा कि- उस वणिक पर आरोप रख नगरवासियों को विश्वास कराकर, पश्चात् जुल्म कर उसकी वे त्रियां ले लू तो मैं निन्दापात्र न बनू। यह निश्चय कर एकान्त में अपने विश्वासपात्र सेवक को बुलाकर राजा ने उसे कहा कि तू कपट स्नेह बता कर विनयंधर के साथ मित्रता कर । पश्चात