________________
रूपवंत गुण पर
अवधिज्ञान से वह देव अपना पूर्वभव जानने पर वहां आ सुजात को नमन कर अपना परिचय दे कहने लगा कि-हे स्वामिन् ! मैं आपका कौनसा इष्ट कार्य करू, सो कहिये । तब सुजात (अपने मनमें) सोचने लगा कि-जो मैं मेरे माता पिता को एक बार देखू तो पश्चात् प्रव्रज्या ग्रहण करू। देव ने उसका यह विचार जानकर चंपापुरी पर निम्नाङ्कित संकट उत्पन्न करने लगा। नगर के ऊपर एक भारी शिला की रचना करी जिसे देखकर राजा आदि लोग बहुत भयभीत हुए, व हाथ में धूप के कड़छे धारण कर हाथ मस्तक पर रखकर कहने लगे हे देव हे देव ! हमने जो किसी का बुरा किया हो तो हमको क्षमा करो । तब वह देव डराने लगा कितुम दास हो गये हो अब कहां जा सकोगे। (पश्चात् कहने लगा कि) पापी मंत्री ने सुश्रावक पर अकार्य का आरोप लगाकर उसे दूषित किया है । इससे आज तुम समस्त अनार्यों को चूरचूर करूंगा। इसलिये उस श्रेष्ठ पुरुष को जो तुम खमाओ तो छूट जाओ तब लोग बोले कि-वह अभी कहां है ? देव बोला इसी नगर के उद्यान में है। तब नगरवासियों के साथ राजा ने वहां जाकर उससे माफी मांगी और शीघ्र ही उसे विशाल हाथी पर चढ़ाया। लोग उसके मस्तक पर हिमालय समान धवल छत्र धारण करने लगे और सुरसरित (गंगा) की लहरों तथा महादेव सदृश श्वेत चामरों से उसे वींजने लगे। व सजल मेघ के समान गर्जते हुए बंदीजन उसका स्तवन करने लगे और सुजात तर्कित लोगों को उनकी धारणा से भी अधिक दान देने लगा। लोग कहने लगे कि धर्म के उदय से तेरा रूप हुआ है और तेरे उदय से धर्म वृद्धि को प्राप्त होता है। इस तरह इन दोनों बातों का परस्पर स्थिर सम्बंध है । (और लोग फिर कहने लगे कि) अहो ! यह पुरुष सचमुच धन्य है कि देवता भी उसकी आज्ञा मानते हैं तथा ऐसे पुरुष जो धर्म