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सुजात की कथा
पालते हैं वह धर्म भी उत्तम होना चाहिये । इत्यादि जिनशासन की प्रभावना कराता हुआ वह अपने घर आकर मां बाप के चरणकमल में निर्मल मन धर कर नमन करने लगा।
राजाने प्रथम धर्मघोष मंत्री को मारने का हुक्म दिया. तब सुजात ने मध्यमें पड़कर उसे छुड़ाया तो भी राजाने उसको निर्वासित किया । तदनन्तर सुजात ने अपना द्रव्य धर्म में व्यय कर राजा की आज्ञा ले अपने मां बाप के साथ दीक्षा ग्रहण की. तथा चरण शिक्षा व करण शिक्षा प्राप्त कर सुविज्ञ हुआ। ये तीनों व्यक्ति दुष्कर तपचरण करके निर्मल केवलज्ञान प्राप्त कर प्रतिज्ञा पूर्ण कर अचल सर्वोत्तम मोक्षपद को प्राप्त हुए ।
इधर देशनिर्वासित धर्मघोष मंत्री भी राजगृह नगर में जाकर वैराग्य प्राप्त कर गुरु से दीक्षा ग्रहण कर साधु की प्रतिमा--विहार स्वीकार कर विचरने लगा। वह मुनि वारत्तपुर में अभयसेन राजा के वारत्त नामक मंत्री के घर में वहोरने गया वहां उनके घी शक्कर युक्त खीर वहोराते हुए उसमें से एक बूद नीचे गिर गया इससे मुनि वह लिये बिना ही चलता हुआ। तब समुदाय में बैठा हुआ मंत्री विचार करने लगा कि मुनि ने भिक्षा क्यों नहीं ली ? इतने में उस बूद पर मक्षिकाए बैठने लगी। उन मक्षिकाओं को छिपकली देखने लगी, उसे गिरगट (सरड़ा) देखने लगा, उसे भी बिल्ली ने देखा, उसे बाहर से आते हुए कुत्ते ने देखा और उसे वहीं रहने वाले कुत्ते ने देखा । वे लड़ने लगे, उन्हें देखकर उनके महाबलवान स्वामी दौड़ कर वहां आये और वहां महायुद्ध मच गया, तब मंत्री मनमें निम्नाङ्कित विचार करने लगा। उक्त मुनिने उपरोक्त कारण से भिक्षा न ली ऐसा विचार करके विशुद्ध भाव के योग से जातिस्मरण पा मंत्री दीक्षा ले सुसमारपुर में आया ।